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॥श्रीराम स्तुति: – नमामि भक्त वत्सलम्॥

जय श्री राम। भगवान श्रीराम को जब अत्रि मुनि ने देखा तब मुनि उनको देखकर प्रसन्न हो गए। अत्रि मुनि अत्याधिक प्रसन्न हो गए कि उनको  शब्द ही नहीं समझ आ रहे थे प्रभु की स्तुति करने के लिए। अरण्य कांड में श्री गोस्वामी तुलसी दास जी ने बड़ा ही सुंदर वर्णन किया है। अत्रि मुनि ने जो प्रभु श्रीराम जी की स्तुति की है वो यहां पर निम्लिखित है। सुबह सवेरे इसका भजन और श्रवण करने से मन चिंतामुक्त हो जाता है।

 

नमामि भक्त वत्सलम् । कृपालु शील कोमलम् ॥

भजामि ते पदांबुजम् । अकामिनाम् स्वधामदम् ॥

निकाम् श्याम् सुंदरम् । भवाम्बुनाथ मंदरम् ॥

प्रफुल्ल कंज लोचनम् । मदादि दोष मोचनम् ॥

 प्रलंब बाहु विक्रमम् । प्रभोऽप्रमेय वैभवम् ॥

निषंग चाप सायकम् । धरम् त्रिलोक नायकम् ॥

दिनेश वंश मंदनम् । महेश चाप खंदनम् ॥

मुनींद्र संत रंजनम् । सुरारि वृन्द भंजनम् ॥

मनोज वैरि वंदितम् । अजादि देव सेवितम् ॥

विशुद्ध बोध विग्रहम् । समस्त दूषणापहम् ॥

नमामि इंदिरा पतिम् । सुखाकरम् सताम् गतिम् ॥

भजे सशक्ति सानुजम् । शची पति प्रियानुजम् ॥

त्वदंघ्रि मूल ये नराह । भजंति हीन मत्सराह ॥

 

पतंति नो भवार्णवे । वितर्क वीचि संकुले ॥

विविक्त वासिनह सदा । भजंति मुक्तये मुदा ॥

निरस्य इंद्रियादिकम् । प्रयांति ते गतिम् स्वकम् ॥

तमेकमद्भुतम् प्रभुम् । निरीहमीश्वरम् विभुम् ॥

जगद्गुरुम् च शाश्वतम् । तुरीयमेव केवलम् ॥

भजामि भाव वल्लभम् । कुयोगिनाम् सुदुर्लभम् ॥

 स्वभक्त कल्प पादपम् । समम् सुसेव्यमन्वहम् ॥

 अनूप रूप भूपतिम् । नतोऽहमुर्विजा पतिम् ॥

प्रसीद मे नमामि ते । पदाब्ज भक्ति देहि मे ॥

पठंति ये स्तवम् इदम् । नरादरेण ते पदम् ॥

व्रजंति नात्र संशयम् । त्वदीय भक्ति संयुताह ॥

 

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