॥भगवदगीता के 8 सबसे लोकप्रिय श्लोक॥
श्री यशोदा का परम दुलारा,बाबा के अँखियन का तारा ।
गोपियन के प्राणन से प्यारा,इन पर प्राण न्योछावर कीजै ॥
बलदाऊ के छोटे भैया,कनुआ कहि कहि बोले मैया ।
परम मुदित मन लेत बलैया,अपना सरबस इनको दीजै ॥
- यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
अर्थ:-
हे भारत, जब-जब धर्म का लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम् की रचना करता हूं अर्थात अवतार लेता हूं।
- नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत: ॥
अर्थ: –
आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है।
- हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥
अर्थ: –
हे कौन्तेय यदि तुम युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख को भोगोगे,इसलिए उठो, हे कौन्तेय , और निश्चय करके युद्ध करो।
- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन:।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अर्थ:-
कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फल में नही है। इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो और न ही कर्म करने में तुम्हारी आसक्ति हो। - परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे–युगे॥
अर्थ: –
सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए , दुष्कर्मियों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं युगों-युगों में जन्म लेता आया हूं।
- क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
अर्थ:-
क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है इससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।
- सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज:।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥
अर्थ:-
हे अर्जुन सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर आश्रय को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा, इसलिए शोक मत करो।
- ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
अर्थ: –
विषयों के बारे में सोचते रहने से मनुष्य को उनसे आसक्ति हो जाती है। इससे उनमें कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में विघ्न आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है।
श्री यशोदा का परम दुलारा,बाबा के अँखियन का तारा ।
गोपियन के प्राणन से प्यारा,इन पर प्राण न्योछावर कीजै ॥
बलदाऊ के छोटे भैया,कनुआ कहि कहि बोले मैया ।
परम मुदित मन लेत बलैया,अपना सरबस इनको दीजै ॥
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