Result Plot

॥सूरदास जी की रचना : हरि नाम का महत्व और भक्ति के लाभ ॥

Surdas Poetry: हरि नाम का आधार | Spiritual Bhajan in Kalikal

कलिकाल में हरि नाम का आधार

है हरि नाम कौ आधार।
और इहिं कलिकाल नाहिंन रह्यौ बिधि-ब्यौहार॥

  • अर्थ: सूरदास जी कहते हैं कि इस कलियुग में केवल हरि नाम ही जीवन का वास्तविक सहारा है। संसार के विधि-विधान और व्यवहार अपने सही मार्ग से भटक गए हैं, लेकिन हरि का नाम ही मुक्ति का मार्ग दिखाता है।
  • उदाहरण:
    जैसे गहरे समुद्र में नाविक अपनी दिशा खो देता है और केवल तारे (सितारे) के सहारे मार्ग ढूंढता है, वैसे ही हरि का नाम हमें संसार के भंवर से पार लगाता है।

नारदादि सुकादि संकर कियौ यहै विचार।
सकल स्रुति दधि मथत पायौ इतौई घृत-सार॥

  • अर्थ: महर्षि नारद, शुकदेव और भगवान शंकर जैसे महान संतों ने भी यही निष्कर्ष निकाला कि समस्त वेदों का सार हरि भक्ति में ही है। जैसे दूध से घी निकालने के लिए उसे मथा जाता है, वैसे ही हरि भजन वेदों का निचोड़ है।
  • उदाहरण:
    यह ठीक वैसा ही है जैसे खेती के बाद अनाज का चयन किया जाता है और उसमें से सर्वोत्तम दाना निकाला जाता है। हरि भजन भी जीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि है।SHREE BAL KRISHNA JI KI AARTI IN HINDI

दसहुं दिसि गुन कर्म रोक्यौ मीन कों ज्यों जार।
सूर, हरि कौ भजन करतहिं गयौ मिटि भव-भार॥

  • अर्थ: हरि भजन करते ही दसों दिशाओं के बुरे कर्म और बंधन ऐसे समाप्त हो जाते हैं, जैसे मछली जाल में फंसकर जल से बाहर आ जाती है।
  • उदाहरण:
    यह ठीक वैसे है जैसे सूरज के निकलते ही अंधकार छिप जाता है। हरि का स्मरण करते ही संसार के दुख मिटने लगते हैं।

अब हों नाच्यौ बहुत गोपाल।
काम क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ विषय की माल॥

अर्थ:
यह पंक्ति सूरदास जी के भक्ति गीत से है, जिसमें वे श्री कृष्ण की भक्ति में पूर्ण रूप से लीन होने की बात करते हैं। “अब हों नाच्यौ बहुत गोपाल” का अर्थ है कि श्री कृष्ण के प्रेम में वह नृत्य करते हुए आनंदित हैं। “काम क्रोध” को चोलना (कपड़ा) और “विषय की माल” को कंठ की माला के रूप में दर्शाते हुए, वे कहते हैं कि यह विकार (इच्छाएं और क्रोध) हमें अपने जीवन में पहनने नहीं चाहिए, क्योंकि ये हमारे भक्ति मार्ग में रुकावट डालते हैं।

उदाहरण:
जैसे कोई व्यक्ति अपनी इच्छाओं और क्रोध में फंसा रहता है, वैसे ही हमें इन विकारों से बचना चाहिए और भगवान की भक्ति में नृत्य की तरह लीन होना चाहिए।

संदेश:
सांसारिक मोह-माया और विकारों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए श्री कृष्ण की भक्ति में समर्पित होना चाहिए।

महामोह के नूपुर बाजत, निन्दा सब्द रसाल।
भरम भरयौ मन भयौ पखावज, चलत कुसंगति चाल॥

अर्थ:
सूरदास जी ने इस पंक्ति में संसारिक मोह और भ्रम को दर्शाया है। “महामोह के नूपुर बाजत” का मतलब है कि जब कोई व्यक्ति मोह के बंधन में फंसा होता है, तो उसकी इच्छाओं और भावनाओं की ध्वनियाँ (नूपुर की तरह) निरंतर बजती रहती हैं। “निन्दा सब्द रसाल” का अर्थ है कि संसारिक मोह और भ्रम के कारण व्यक्ति दूसरों की निंदा और बुरी बातें बोलता है। “भरम भरयौ मन भयौ पखावज” में “भरम” का अर्थ है भ्रम और “पखावज” (ढोल) से यहाँ यह संकेत दिया गया है कि भ्रम के कारण मन में डर और असुरक्षा की भावना पैदा होती है। “चलत कुसंगति चाल” का अर्थ है कि गलत संगति और कुविचार से आदमी के कदम गलत दिशा में चलते हैं।

संदेश:
यह पंक्ति यह शिक्षा देती है कि मोह, भ्रम, निंदा और कुविचार के कारण मनुष्य अपनी सच्ची दिशा से भटक जाता है। इसलिए जीवन में सही संगति और सही विचारों को अपनाना चाहिए, ताकि हम सच्चे मार्ग पर चल सकें और हमारे मन में शांति और सुरक्षितता बनी रहे।

तृसना नाद करति घट अन्तर, नानाविध दै ताल।
माया कौ कटि फैंटा बांध्यो, लोभ तिलक दियो भाल॥

अर्थ:
यह पंक्ति यह बताती है कि मनुष्य की तृष्णाएँ और इच्छाएँ उसे मानसिक अशांति देती हैं, जैसे अंदर कई आवाजें गूंजती रहती हैं। माया (संसारिक मोह) ने उसे अपने जाल में फंसा लिया है और लोभ (लालच) ने उसकी पहचान को प्रभावित कर दिया है।

संदेश:
तृष्णा, माया और लोभ मनुष्य को भटका कर उसे सच्चे मार्ग से दूर करते हैं। इनसे बचकर आत्मशांति की ओर बढ़ना चाहिए।

संसार के भंवर से पार लाने वाला हरि का नाम

कोटिक कला काछि दिखराई, जल थल सुधि नहिं काल।
सूरदास की सबै अविद्या, दूरि करौ नंदलाल॥

अर्थ:
भगवान श्री कृष्ण की असीम लीलाएं और कलाएं सभी स्थानों और समय से परे हैं। सूरदास जी भगवान से प्रार्थना करते हैं कि उनकी सभी अज्ञानता दूर हो जाए और वे भगवान के दिव्य ज्ञान में समाहित हो जाएं।

संदेश:
भगवान की दिव्य लीलाओं और ज्ञान का अनुभव करने के लिए हमें अपनी अविद्या को दूर करना चाहिए।

प्रभु, हौं सब पतितन कौ राजा।
परनिंदा मुख पूरि रह्यौ जग, यह निसान नित बाजा॥

अर्थ:
यह पंक्ति सूरदास जी की प्रार्थना को व्यक्त करती है, जिसमें वे भगवान से कहते हैं कि वे सभी पापियों और पतितों के राजा हैं। उनके मुख से परनिंदा (दूसरों की निंदा) भर गई है, और यह उनके जीवन का प्रतीक बन गया है।

संदेश:
यह पंक्ति आत्म-स्वीकृति और आत्मनिरीक्षण की ओर इशारा करती है। सूरदास जी अपनी कमियों और पापों को स्वीकारते हुए भगवान से अपने अंदर की बुराईयों को दूर करने की प्रार्थना कर रहे हैं।

तृस्ना देसरु सुभट मनोरथ, इंद्रिय खड्ग हमारे।
मंत्री काम कुमत दैबे कों, क्रोध रहत प्रतिहारे॥

अर्थ:
यह पंक्ति बताती है कि तृष्णा और इच्छाएं हमारे मन में बुराई फैलाने वाले सैनिक की तरह काम करती हैं। इंद्रियां हमारे लिए शस्त्र बन जाती हैं, और काम तथा क्रोध हमारे जीवन में बुराई और भ्रम उत्पन्न करते हैं।

संदेश:
हमारी इंद्रियों और भावनाओं पर नियंत्रण रखना आवश्यक है, क्योंकि तृष्णा, काम और क्रोध जैसे विकार हमें सही मार्ग से भटका सकते हैं।

गज अहंकार चढ्यौ दिगविजयी, लोभ छ्त्र धरि सीस॥
फौज असत संगति की मेरी, ऐसो हौं मैं ईस।

अर्थ:
यह पंक्तियाँ अहंकार और लोभ के प्रभाव को दर्शाती हैं। जैसे हाथी का अहंकार बढ़ता है और वह लोभ में फंसता है, वैसे ही व्यक्ति भी बुरी संगति और गलत भावनाओं से प्रभावित हो जाता है।

संदेश:
अहंकार और लोभ इंसान को सही रास्ते से भटका सकते हैं। हमें इनसे बचने के लिए सतर्क रहना चाहिए।

मोह मदै बंदी गुन गावत, मागध दोष अपार॥
सूर, पाप कौ गढ दृढ़ कीने, मुहकम लाय किंवार॥

अर्थ:
मोह और मद (अहंकार) व्यक्ति को बंदी बना लेते हैं और उसके गुणों को भी झूठा बना देते हैं। सूरदास जी कहते हैं कि पाप के कड़े गढ़ को सुदृढ़ किया है और इससे व्यक्ति का मन बुराईयों से भर जाता है।

संदेश:
मोह और अहंकार इंसान को पाप और गलत मार्ग पर ले जाते हैं, जिससे वह अपनी वास्तविकता को खो बैठता है।

अब कै माधव, मोहिं उधारि।
मगन हौं भव अम्बुनिधि में, कृपासिन्धु मुरारि॥

अर्थ:
यह पंक्तियाँ सूरदास जी की भक्ति को दर्शाती हैं, जहां वे भगवान श्री कृष्ण से अपनी मुक्ति की प्रार्थना कर रहे हैं। सूरदास जी कहते हैं कि अब, हे माधव (कृष्ण), मुझे इस संसार के दुखों से उबारो, क्योंकि मैं इस भवसागर में फंसा हुआ हूं। आप ही मेरे लिए कृपा के समुद्र हो, मुझे आपकी कृपा से मोक्ष प्राप्त हो।

संदेश:
सच्चे भक्त के दिल में भगवान की कृपा की आवश्यकता होती है ताकि वह संसार के मोह और दुखों से मुक्त हो सके।

हरि नाम से मुक्ति प्राप्ति की प्रक्रिया

नीर अति गंभीर माया, लोभ लहरि तरंग।
लियें जात अगाध जल में गहे ग्राह अनंग॥

अर्थ:
यह पंक्तियाँ माया के प्रभाव को व्यक्त करती हैं। सूरदास जी कहते हैं कि माया एक गहरी और अथाह जल की तरह है, जिसमें लोभ की लहरें उठती हैं। जब व्यक्ति इस गहरे जल में फंसता है, तो वह मोह और लोभ के जाल में पकड़ा जाता है, जैसे अनंग (अप्राकृतिक आकर्षण) द्वारा व्यक्ति को पकड़ लिया जाता है।

संदेश:
माया और लोभ का प्रभाव बहुत गहरा होता है, और व्यक्ति जब इनसे प्रभावित होता है तो वह अंधकार में फंस जाता है।

मीन इन्द्रिय अतिहि काटति, मोट अघ सिर भार।
पग न इत उत धरन पावत, उरझि मोह सिबार

अर्थ:
जैसे मछली अपने इन्द्रिय को पकड़ने के कारण निरंतर संघर्ष करती है, वैसे ही हमारी इन्द्रियाँ हमें पाप और मोह में फंसा देती हैं। मनुष्य अपने पथ पर सही कदम नहीं रख पाता, क्योंकि वह मोह के जाल में उलझ जाता है।

संदेश:
यह शेर इन्द्रियों के वशीभूत होने से होने वाले मानसिक उलझन और मोह के प्रभाव को दर्शाता है, जो व्यक्ति को सही मार्ग पर चलने से रोकता है।

काम क्रोध समेत तृष्ना, पवन अति झकझोर।
नाहिं चितवत देत तियसुत नाम-नौका ओर॥

अर्थ:
काम, क्रोध और तृष्णा के तूफान में मन बहुत विचलित है, जैसे तेज़ हवा द्वारा झकझोरा जा रहा हो। लेकिन ध्यान नहीं केंद्रित हो पा रहा है और वह नाम-नौका (कृष्ण का नाम) का सहारा नहीं ले पा रहा है।

संदेश:
यह शेर व्यक्ति के भीतर के विकारों (काम, क्रोध, तृष्णा) के प्रभाव को दर्शाता है, जो मन को परेशान करते हैं और भगवान के नाम का स्मरण करने में रुकावट डालते हैं।

थक्यौ बीच बेहाल बिह्वल, सुनहु करुनामूल।
स्याम, भुज गहि काढ़ि डारहु, सूर ब्रज के कूल॥

अर्थ:
मैं बीच मार्ग में थक कर बेहाल हो गया हूँ। कृपया सुनो, करुणा के स्रोत स्याम (कृष्ण)! तुम मेरी बाहों को पकड़कर मुझे उद्धार करो और ब्रज के किनारे पर ले आओ।

संदेश:
यह शेर भगवान श्री कृष्ण से मदद की प्रार्थना है, जिसमें भक्त अपने दुखों और संघर्षों से राहत पाने के लिए भगवान की शरण में आता है।

SHREE RAM PRABHU KI STUTI IN HINDI

कब तुम मोसो पतित उधारो।
पतितनि में विख्यात पतित हौं पावन नाम तिहारो

अर्थ:
हे भगवान, कब तुम मुझे, जो पतितों में सबसे बड़ा पतित हूँ, उधार (बचाओ) करोगे? मैं तो वही व्यक्ति हूँ, जो पापों से लिप्त है, लेकिन तुम अपने पवित्र नाम से मुझे उद्धार दो।

संदेश:
यह शेर भगवान से क्षमा और उद्धार की प्रार्थना है। यह दिखाता है कि पापी व्यक्ति भी भगवान के नाम से शुद्ध हो सकता है।

बड़े पतित पासंगहु नाहीं, अजमिल कौन बिचारो।
भाजै नरक नाम सुनि मेरो, जमनि दियो हठि तारो॥

अर्थ:
जो बहुत बड़े पापी होते हैं, उनके पास भी कोई बचाव नहीं होता। अजमिल जैसे पापी के बारे में सोचें, जिन्होंने नरक में जाने के बावजूद भगवान का नाम लिया और यमराज से बच गए। सूरदास कहते हैं कि, पापी भी भगवान के नाम से मुक्ति पा सकते हैं।

संदेश:
यह शेर बताता है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी बड़ा पापी क्यों न हो, भगवान के नाम से अपना उद्धार कर सकता है।

छुद्र पतित तुम तारि रमापति, जिय जु करौ जनि गारो।
सूर, पतित कों ठौर कहूं नहिं, है हरि नाम सहारो॥

अर्थ:
हे राम के पतिके, तुम सबको उबारने वाले हो, चाहे वह कितने भी छोटे या पापी क्यों न हों। सूरदास कहते हैं कि, पापियों के लिए कोई ठिकाना नहीं है, परंतु भगवान का नाम ही उनका सहारा है।

संदेश:
यह शेर भगवान की कृपा और उनके नाम की महिमा को दर्शाता है। भगवान का नाम पापियों को भी उबारने में सक्षम है, और यही उनका सर्वोत्तम सहारा है।

जसोदा हरि पालनै झुलावै।

हलरावै दुलरावै मल्हावै जोई सोई कछु गावै।।

अर्थ:
माँ यशोदा भगवान श्री कृष्ण को पालती हैं, उन्हें झुलाती हैं, दुलार करती हैं और उन्हें शरारतें दिखाती हैं। जो कुछ भी वह करती हैं, वह भगवान की लीलाओं का एक रूप होता है।

संदेश:
यह शेर माँ यशोदा की कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और उनके प्रति ममता को दर्शाता है। भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं की सुंदरता और दिव्यता का प्रतीक है।

मेरे लाल को आउ निंदरिया काहें न आनि सुवावै।

तू काहै नहिं बेगहिं आवै तोकौं कान्ह बुलावै।।

अर्थ:
माँ यशोदा भगवान श्री कृष्ण से कह रही हैं कि मेरे लाल, तू क्यों नहीं सोता? यदि तू सोने में न आ रहा है तो कृष्ण को बुलाने से वो तुझे सोने का सुख देंगे।

संदेश:
यह शेर माँ यशोदा की ममता और भगवान श्री कृष्ण की लीला को दर्शाता है, जिसमें माँ अपने लाल को शांति और सुकून की प्राप्ति के लिए कृष्ण की दिव्य शक्ति को याद करती हैं।

कबहुं पलक हरि मुंदी लेत हैं कबहुं अधर फरकावै।

सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि करि सैन बतावै।I

अर्थ:
कभी भगवान श्री कृष्ण अपनी पलकें बंद कर लेते हैं, कभी अपने अधरों को हलका सा हिलाते हैं। वे सोते समय भी मौन रहते हुए अपनी लीलाओं का संकेत करते हैं और अपनी भक्ति का अनुभव कराने के लिए चुपके से अपनी दिव्य उपस्थिति का एहसास कराते हैं।

संदेश:
यह शेर भगवान की अदा और लीला की गहराई को दर्शाता है, जहां वे अपनी साधारणता में भी अद्वितीय और दिव्य होते हैं।

इहि अंतर अकुलाइ उठे हरी जसुमति मधुरै गावै।

जो सुख सुर अमर मुनि दुरलभ सो नंद भामिनी पावै।।

अर्थ:
माता यशोदा के ह्रदय में कृष्ण के प्रति अपार प्रेम जाग्रत होता है, और उनके प्रेम में अत्यधिक उल्लास और आनंद है। यह आनंद इतना विशिष्ट और दुर्लभ है कि वह सुख, जो देवताओं, मुनियों और अमरों के लिए भी कठिन है, वह नंदनी (यशोदा) को प्राप्त हुआ है।

संदेश:
यह शेर भगवान श्री कृष्ण के प्रति माता यशोदा के अत्यधिक प्रेम और समर्पण को दर्शाता है, जो उन सुखों और आनंदों से भी अधिक है, जिनका अनुभव देवता और साधक नहीं कर पाते।

मैं नहीं माखन खायो मैया। मैं नहीं माखन खायो।

ख्याल परै ये सखा सबै मिली मेरैं मुख लपटायो।।

अर्थ:
कृष्णा माता यशोदा से कहते हैं, “मैया, मैंने माखन नहीं खाया है।” लेकिन उनके मित्र (सखा) उन्हें ललचाकर कहते हैं कि कृष्ण के मुँह में माखन लगा हुआ है, इसलिए वह झूठ बोल रहे हैं। कृष्ण अपनी मासूमियत और शरारतों से माता का दिल जीतने की कोशिश करते हैं।

संदेश:
यह शेर कृष्ण की मासूमियत और प्रेम को दर्शाता है, जिसमें वह अपनी शरारतों से माता का दिल मोहित करते हैं और ईश्वर के भक्तों के प्रति उनकी स्नेहभावना व्यक्त करते हैं।

देखि तुही छींके पर भजन ऊँचे धरी लटकायो।

हौं जु कहत नान्हें कर अपने मैं कैसे करि पायो।।

अर्थ:
सूरदास जी कहते हैं कि जब यशोदा माता ने देखा कि कृष्ण ने माखन की चोरी की है और वह माखन मुँह में लेकर छींके पर चढ़ कर भजन गा रहे हैं, तो यशोदा माता ने उन्हें डांटा। वह सोच रही थीं कि भगवान की लीला कैसी अजीब है, वे छोटे बच्चे होकर भी इतने नटखट हैं।

संदेश:
ईश्वर की लीला अनंत और अप्रतिम होती है। उनकी मासूमियत और क्रीतियों में दिव्यता होती है, जो हमें जीवन में सच्ची भक्ति का मार्ग दिखाती है।

मुख दधि पोंछी बुध्दि एक किन्हीं दोना पीठी दुरायो।

डारी सांटी मुसुकाइ जशोदा स्यामहिं कंठ लगायो।।

अर्थ:
सूरदास जी कहते हैं कि श्री कृष्ण ने माखन खाया, मुंह में दूध लगा लिया था। जब यशोदा ने उनका मुंह साफ किया, तो कृष्ण ने मुस्कुराते हुए अपनी मां को गले लगा लिया। उनका प्यार और मासूमियत देखकर यशोदा प्रसन्न हो गईं।

संदेश:
भगवान की मासूमियत और सरलता ही उनकी दिव्यता का सबसे प्यारा रूप है, जो हर दिल को छू जाता है।

बाल बिनोद मोद मन मोह्यो भक्ति प्राप दिखायो।

सूरदास जसुमति को यह सुख सिव बिरंचि नहिं पायो।।

अर्थ:
सूरदास जी कहते हैं कि श्री कृष्ण का बाल रूप देखकर उनकी माया में बसा मन परम आनंदित होता है और भक्ति प्राप्त करने का वास्तविक सुख देखने को मिलता है। यह सुख भगवान शिव और ब्रह्मा जी को भी प्राप्त नहीं हुआ है, जो नंदनी यशोदा को मिला।

संदेश:
भगवान के बाल रूप की भक्ति और उनकी सरलता में अपार सुख छिपा है, जिसे कोई और नहीं पा सकता।

है हरि नाम कौ आधार।
और इहिं कलिकाल नाहिंन रह्यौ बिधि-ब्यौहार॥

अर्थ:
सूरदास जी कहते हैं कि इस कलिकाल में केवल हरि का नाम ही जीवन का असली आधार है, और इस समय कोई भी अन्य उपाय विधि या धर्म के अनुसार फलदायी नहीं है।

संदेश:
हरि के नाम का जप ही इस कलिकाल में सबसे प्रभावी और जीवन को उद्धार देने वाला साधन है।

नारदादि सुकादि संकर कियौ यहै विचार।
सकल स्रुति दधि मथत पायौ इतौई घृत-सार॥

अर्थ:
सूरदास जी कहते हैं कि नारद, सुकदेव, शंकर आदि महापुरुषों ने यही विचार किया और सभी वेदों को अच्छे से समझा। जैसे दही को मथकर घी निकाला जाता है, वैसे ही वेदों में से भगवान के श्रेष्ठतम ज्ञान (घृत) को प्राप्त किया।

संदेश:
भगवान का सच्चा ज्ञान वेदों से प्राप्त होता है, और यह ज्ञान आत्मा की शुद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

दसहुं दिसि गुन कर्म रोक्यौ मीन कों ज्यों जार।
सूर, हरि कौ भजन करतहिं गयौ मिटि भव-भार॥

अर्थ:
सूरदास जी कहते हैं कि जैसे मछली को जल में जाल से फंसाया जाता है और वह जाल में उलझ जाती है, वैसे ही व्यक्ति संसार के बंधनों में फंस जाता है। लेकिन जब वह भगवान के भजन में रत होता है, तो उसकी सारी कष्‍ट मिट जाते हैं और वह संसार के बंधनों से मुक्त हो जाता है।

संदेश:
भगवान के भजन और ध्यान से ही संसार के बंधनों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति का जीवन सहज एवं शुद्ध हो जाता है।

 

Scroll to Top